नई दिल्ली 
दिल्ली के तमाम बॉर्डरों पर केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन लगातार जारी है। इस बीच कई लोग इन कृषि कानूनों के समर्थन और विरोध में सामने आए हैं। अब पूर्व आईएफएस अधिकारियों के एक समूह ने इन कृषि कानूनों का समर्थन किया है। इन अधिकारियों ने किसान आंदोलन के समर्थन में उठाए गए विकसित देशों की आवाज पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि एक तरफ वे चाहते हैं कि भारत अपने कृषि बाजार को उदार बनाए, वहीं दूसरी तरफ इन स्थानों के राजनीतिक समूह और सांसद आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं और कानून के लिए सरकार की आलोचना कर रहे हैं। भारतीय विदेश सेवा के पूर्व अधिकारियों के समूह ने एक बयान में कहा, ''निश्चित तौर पर आप साथ-साथ इसका विरोध और समर्थन नहीं कर सकते हैं। बाजार की ताकतों, खाद्य सुरक्षा और किसान कल्याण के बीच संतुलन साधना बहुत नाजुक बात है और संप्रभु सरकार को इसमें संतुलन बनाना है।" बयान पर हस्ताक्षर करने वाले 20 पूर्व अधिकारियों में अजय स्वरूप, मोहन कुमार, विष्णु प्रकाश और जे एस सपरा भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि कोविड के बाद सतत कृषि और खाद्य सुरक्षा के भविष्य पर अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन सहित केयर्न समूह के 19 सदस्यों को दोहरा मानदंड खत्म करना चाहिए, जिसने वैश्विक उत्पादन और बाजार को उलझा रखा है। पूर्व आईएफएस अधिकारियों ने कृषि पर विश्व व्यापार संगठन के विभिन्न पहलुओं की भी आलोचना की और कहा कि यह अमेरिका और यूरोपीय संघ ने 1992 में द्विपक्षीय संबंधों के तहत बनाया था, जो कृषि में सबसे अधिक सब्सिडी देने वाले देश हैं।
 

Source : Agency